आत्म – निर्भरता Self-Reliance

मेरे प्रिय साथियों , नमस्ते !
अभी तक हम ने समझा कि आनंदित जीवन के लिए सर्वप्रथम अपने दृष्टिकोण पर ध्यान देना है। फिर हम ने जाना कि अपने प्रयास और आभास से अपने स्वभाव को जान कर, पहचान कर और अपने सच्चे भाव को अपने पॉजिटिव विचारों से साथ जोड़ कर, एकसार हो कर, उन्हें प्रभावशाली बना कर – आनंदमय जीवन की तरफ अग्रसर होना है । पिछले लेख में हम ने यह जाना कि हम कैसे अपने भाव, विचार और कर्मों को एकसार कर के त्रिगुणी बन सकते है।

त्रिगुणी बनना या होना सुनने में जितना सरल लगता है वास्तविक जीवन में उतना सरल और सहज है नहीं। त्रिगुणी बनना और उस कसौटी पर खरा उतरना अगर हमारा लक्ष्य है तब हमें अभी से अपने मन, वचन, भाव, और कर्मों को साधना होगा। जिस दिन हमने अपने मन (विचार) अपने ह्रदय (भाव) को और अपने शरीर (कर्म) को साध लिया और उन्हें एक बिन्दु पर ले आये तब हमारी असली आनंद यात्रा शुरू होगी। अपने जीवन लक्ष्य को पाने की अद्भुत आनन्दित जीवन यात्रा। फिर हम व्यक्ति को पीछे छोड़ कर साधक बन कर ज़िन्दगी को जियेंगे।

आनन्द के साधक क्यों और कैसे बने ? जीवन लक्ष्य - प्रयास | अभ्यास | विश्वास द्वारा आनन्द अनुभव
मन के साधक बने – मन को नमन या अमन कैसे करें ?
जीवन लक्ष्य – प्रयास | अभ्यास | विश्वास द्वारा आनन्द अनुभव

आनन्द के साधक क्यों और कैसे बने?

साधक बन कर ही हम अपने जीवन लक्ष्य – आनन्दमय स्रोत को जान पायेंगे – उस में एकसार हो सकेंगे।

सब से पहले जो सब से चंचल है – वह है हमारा मन – उस को समझाना होगा और समझ के साथ उस को साधना होगा।

मन को देखा जाये तो सिर्फ एक काल्पनिक आयाम है हमारे विचारों का। जिस का अपना कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि वह सिर्फ हमारे द्वारा ही उत्पन्न होता है, जो हमारे ही विचारों का पुलिंदा है। मन का जन्म होता है जब हम कुछ काम को आसान बनाने के लिए सहायक ढूंढते है। फिर मन को अपनी सेवा के लिए, जिंदगी को आसान बनाने के लिए आमंत्रित या उत्पन्न करते है। शुरू में तो सब अच्छा लगता है पर धीरे-धीरे यह मन हम पर अपना राज़ जमा लेता है और हमेशा अपनी बात मनवाता है। जिस को हम ने अपने सेवक के रूप में पाला-पोसा होता है , वही मन हमारी कमियों को जान कर, हमारा मालिक बन जाता है।

इसलिए सजगता के साथ, प्रयास कर – अभ्यास कर, अपने विचारों को नियंत्रित कर के, एक-एक कर के हमें उन आदतों को बदलना होगा जिन को हमारी कमजोरी जान के, मन हमारे ही सामने उन को अड़ा देता है – अपने बात मनवाने के लिए। अपनी मानसिक सजगता को साध कर, अपने ध्यान को सकारात्मक विचारों पर केन्द्रित कर के, हम धीरे-धीरे सब बंधनों से मुक्त हो सकते है। अब वह मन जिस को हम ने अपनी इन्द्रियों को लगाम लगाने के लिए बनाया था और जो हमारी लापरवाही के चलते उसी लगाम से हमारे ह्रदय (भावों) को नियंत्रित करने लगा था – पुनः अपने मूल रूप में स्वमेव आ जाता है और फिर नमन हो कर हमारा कहना मानने लगता है।

मन का नमन होना यानी आनन्द अमन के चमन का खुलना – खिलना।

हमारे विचारों के साधने पर मन स्वयं सध गया और उस का अस्तित्व एक तरह से विलुप्त हो गया – अब हम अपने भावों की बागड़ोर अपने ह्रदय के स्वामी यानि अपने आत्मन को दे सकते है। अब जीवन स्वमेव सत्य को अनुसरण करेगा। जैसे बच्चे होते है – सदैव प्रसन्न, प्रफुल्लित, सहज, मस्त, निर्विकार, निर्विचार हमेशा वर्तमान में प्रस्तुत (being in the present moment)

हमारे विद्वान् और ऋषि-मुनि का कहना है और अब रिसर्च भी दर्शाती है कि ०-७ साल तक मन का निर्माण नहीं होता – और यहाँ तक भी कहा जाता है की बहुत छोटे बच्चे हमेशा ध्यान में ही होते है – परम आनन्द के साधक। ध्यान देने वाली बात है की हम जन्म से ही है – सहज समाधी की अवस्था का हमें पूर्ण अनुभव होता है परन्तु हमारी अवस्था – हमारी परवरिश और सामाजिक प्रचलित व्यवस्थाओं की वज़ह से – हम से छूट जाती है और हम एक रोबॉट (खिलौने) की तरह – एक कठपुतली बन कर कभी अपने मन के इशारों पर या कभी अपने परिवार, समाज या दूसरों के इशारों पर चलते है या यह कहिये की नाचते रहते है।

कुछ समय निकल कर इस बात पर ध्यान देना कि आप का क्या हाल है? अपने आत्मन की बात मानते है या अपने काल्पनिक मन की?

अगर बात समझ में आ गई तो फिर शुरू करिये अपने मन को नमन करने का प्रयासअभ्यास करिये मन को साधने की और फिर विश्वास से आनन्द लीजिये उस अमन का जो सहज, सरल भाव से प्रकट होगा।

साधक बनिए और अपनी आनन्द यात्रा को शुरू करिये।

आप का साथी, सहयोगी और सहयात्री
गोपीकृष्ण बाली

मन को नमन या अमन कैसे करें के लिए अगले लेख को अवश्य पढ़ना ” मन को साधना “

The Source

The Source (Founder - CEO)
CircleX.in | Centre of Excellence for
Holistic Well-Being in Life & Work

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