अभी तक आप ने यह जाना कि आनन्दित जीवन जीने के लिए पहले अपने जीवन-लक्ष्य को ढूँढना है। फिर यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम उस लक्ष्य को प्राप्त करें, हमें सिर्फ एक ही काम करना है – उस लक्ष्य को पाने का ‘संकल्प‘ लेना है।
जीवन-लक्ष्य को जान भी लिया, और उस को हासिल करने का संकल्प भी ले लिया इस का मतलब यह नहीं की अब हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए। हर दिन थोड़ा थोड़ा, परन्तु निरन्तर प्रयास (काम) भी करना है।
पिछले सप्ताह हम ने जाना कि आनंदित जीवन की प्रथम सीढ़ी पर पहला कदम है – अपने दृष्टिकोण पर ध्यान देना।
क्या हमारा ध्यान – सकारात्मक दृष्टिकोण को अपना कर, स्वयँ को बदलने पर है? या हम पुरानी अवधारणाओं, नेगेटिव प्रोग्रामिंग के आधीन हो कर सब को बदलने या उन से बदला लेने के लिए अपनी ज़िन्दगी को, अपनी ख़ुशियों को दाव पर लगा रहें है?
अगर हमारा चुनाव सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ है तो अवश्यमेव हम ने अब तक अपने पॉजिटिव विचारों को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी होगी। अनुभव गवाह है की सकारात्मक विचारों से सींचा गया मन- सदैव शुद्ध बुद्धि द्वारा सत्कर्म और आनंदमय जीवन के लिए सहज और सहर्ष तैयार हो जायेगा। यह तभी संभव है जब हम लगातार स्व:ध्यान और आत्म-दृष्टि को ‘आनन्द‘ पर केन्द्रित करने का प्रयास करते है।
जब जब हम अपने विचारों को सही दिशा में केन्द्रित करते है – एक लक्ष्य पर – अपने जीवन-लक्ष्य की तरफ तो प्रकृति और सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड की शक्तियाँ एकजुट हो कर हमारे लिए उपलब्ध हो जाती है – प्रकट या परोक्ष रूप से। इसलिए यह आनन्द जीवन का प्रथम सूत्र है – ‘विचारों की दिशा बदलने से हमारी जीवन – दशा भी बदलेगी’ सत्य सिद्ध होती है।
इस प्रयास का निरंतर अभ्यास करना यानि अपने आनन्द के लिए आप ने अपनी ह्रदय रूपी भूमि को तैयार कर – अपने सकारात्मक विचारों के बीज डालने शुरू कर दिये।
स्वभाव – स्व: का भाव
आज के लेख का केन्द्र-बिन्दु है हमारे भाव – हर विचार के साथ या उन विचारों के पीछे जुड़ें होते है हमारे भाव। यह विचार हमारे मन-मष्तिस्क के अंदर भावों को उत्पन्न या प्रकट करते हैं। यही भाव प्रमुख है उन विचारों को कर्मो के साथ जोड़नें के लिए।
भाव हमारे आत्म-बिंदु को हमारे मन और बुद्धि से मिलाने का, जोड़ने का काम करते है। यह भाव वो लग़ाम है जो मन के घोड़ों को बुद्धि द्वारा नियंत्रित करती है और हमारे शरीर रूपी रथ को आगे बढ़ने में, पूर्व निर्धारित दिशा में, अपने लक्ष्य की तरफ ले जाती है। इस लग़ाम रूपी भावों को मजबूत और लचीला होना, आत्मा-नियंत्रित होना बहुत आवश्यक है। यही भाव हमारे स्व:भाव को दर्शाता है – हमारे विचारों का प्रतिबिम्ब है।
अगर हमारे जीवन में भाव का अभाव है तो बहुत संभव है कि हम अपने विचारों को नियंत्रित नहीं कर सके और जैसा परिस्थिति ने चाहा या किसी व्यक्ति विशेष ने अपने अनुसार हमें और हमारी सोच को प्रभावित किया। हम कभी भी किसी भी दिशा में बह गए – और वह बहाव हमारे जीवन -लक्ष्य के विपरीत भी हो सकता है। इसलिए कृपया अपने प्रयास और आभास से अपने स्वभाव को जाने, पहचाने और अपने सच्चे भाव को अपने पॉजिटिव विचारों से साथ जोड़ कर, एकसार हो कर, उन्हें प्रभावशाली बना कर – आनंदमय जीवन की तरफ अग्रसर हों।
अगर आप का आत्म-विश्वास जगा है तो फिर देर किस बात की, आइये मिलकर इस आनन्द यात्रा का अनुभव लें और अपने साथियों को भी प्रेरित करें।
आनन्दित जीवन के लिए अपने सच्चे भाव को अपने सकारात्मक विचारों के साथ जोड़ें और जुड़ें इस आनन्दित अभिव्यक्ति की अनुभव आनन्द यात्रा में। 🙂
गोपीकृष्ण बाली