जीवन कैसे बदला जाएँ या जीवन में बदलाव कैसे लायें आज इस पर बात करेंगे।
बदला – बदलना शब्द दोधारी तलवार की तरह है। थोड़ी सी चूक हो गई तो गड़बड़ भी हो सकती है, इस लिए सचेत रह कर – ध्यान से पढ़ना।
चलिए पहले बदला शब्द पर फोकस करते है – बदला यानी चेंज (change) ‘जो बदल गया ‘ और बदला यानी रिवेंज (Revenge) – दुश्मनी निकलना।
अब बात सिर्फ हमारे दृष्टिकोण की है – जीवन को बदला जाये या दूसरी तरफ जीवन भर बदला लेने की रंजिश की जाये। कोई घटना हुई, किसी ने कुछ अच्छा – बुरा कह दिया या कर दिया – और हम ने अपने आप को बदला या अपने आप को बदला लेने में लगा दिया। दो बातें – बिलकुल भिन्न भिन्न दिशाओं में ले जाती हुई – एकदम विपरीत दिशाएँ – दोधारी तलवार की तरह – या तो अपनी कमियों को काटो या दूसरे को काटने का – नीचे दिखाने का प्रयास करो।
ध्यान देने की बात यह है कि ‘प्रयास‘ तो दोनों अवस्थाओं में करना होगा परन्तु रिज़ल्ट अलग-अलग। अगर आप ने अपने को बदला तो सुःख, शान्ति और आनन्द मिलेगा और जीवन भर बदला लेने का सोचा तो तनाव, अलगाव, चिंता, डर, गुस्सा और अपमान इत्यादि का आमना-सामना हो सकता है।
बदल ना – कौन रोकता है ? बदल दो – अपने आप को।
दूसरा शब्द है ‘बदलना‘ यानि कोई अच्छी – बुरी घटना हुई और हम उस परिस्थिति को या उस व्यक्ति को बदलना चाहते है। अपनी पूरी शक्ति लगा देते है हम की वह कारण और परिस्तिथि को बदलने के लिए।
थोड़ा रुकिए – समय है अपने आप को जान कर, पहचान कर, चुनाव करने का। हम सदैव दूसरों को ही क्योँ बदलना चाहते है? बहुत कम लोग इस तरफ भी ध्यान देते है की क्यों न हम स्वयं ही बदल जाएँ।
सब हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है। यहीं पर हमें अपने विचारों को जान कर, अपने मन को पहचान कर, अगर गलत दिशा में जा रहा है तो सजगता से – सतर्कता से अपनी सोच को और विचारों की दिशा को बदलना होगा। दिशा बदली तो दशा जरूर बदलेगी। दशा बदली तो कर्म बदलें जायेंगे और बदलते कर्मों से हमारे व्यवहार को भी बदलना होगा – फिर कार्यशैली में बदलाव होगा।
आप की सोच क्या कहती है? बदला या बदलाव? हमारी सोशल प्रोग्रामिंग इस तरह हुई है कि हम सब दोष सामने वाले पर डाल देना चाहते है, उस को बदलना चाहते है और वह नहीं बदला तो बदला लेने पर आतुर हो जाते है ? ठन्डे दिमाग़ से बैठ कर सोचना, विचार करना – क्योँ हम अपना ज़्यादातर समय और शक्ति, मानसिक ऊर्जा यूँ ही व्यर्थ कर देते है।
आइये मिल कर इस हठ को छोड़ें और कुछ कदम बढ़ायें अपने पुरानी डरी हुई – सहमी-सिकुड़ी हुई मानसिकता को बदलने की। आनन्द पाने का पहला सोपान है – अपने दृषिकोण को जान कर – पहचान कर – स्वयं को बदलने के लिए मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर से तैयार होना।
बदलाव जरूरी है – अपने दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव, अपनी बुनियादी सोच का बदलाव, अपने काम करने के तरीकों का बदलाव, अपने वातावरण को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप अपने को तैयार करने का संकल्प लेने का समय आ गया है।
आनन्दित जीवन के लिए बदलाव को आमंत्रित करें और जुड़ें इस आनन्द यात्रा में।
🙂 सदैव आनन्दित रहें ~ गोपीकृष्ण बाली 🙂