मेरे प्रिय साथियों , नमस्ते !
अभी तक हम ने समझा कि आनंदित जीवन की प्रथम सीढ़ी का पहला कदम है – अपने दृष्टिकोण पर ध्यान देना। फिर हम ने जाना कि अपने प्रयास और अभ्यास से, अपने होने के आभास को, अपने स्व:भाव को जाने, पहचाने और अपने सच्चे भाव को अपने पॉजिटिव विचारों से साथ जोड़ कर, एकसार हो कर, उन्हें प्रभावशाली बना कर – आनंदमय जीवन की तरफ अग्रसर हों।
आज का केंद्र बिन्दु है कि हम कैसे अपने भाव, विचार और कर्मों को एकसार कर के त्रिगुणी बन सकते है। मैंने अपने जीवन में पिछले दशक में कई कॉर्पोरेट जगत, तकनीकी संस्थाओं और देश की उच्चतम यूनिवर्सिटी के दिग्गजों के साथ काम किया है, और बहुत आश्चर्य होता है जब हम उन सब को बहुत नज़दीक से देखते है या जब उन की कार्यशैली को देखते है पता चलता कि लगभग ९० % व्यक्तियोँ की मन, बुद्धि और कर्मो के बीच बहुत बड़ा अन्तर्द्वंद चल रहा होता है। वह जो ऊपर से दिखते है, वैसे वास्तव में नहीं होते। कहते कुछ है, करते कुछ और है और मंशा (इरादा) तो कभी-कभी बिलकुल भिन्न होती है।
कुछ लोग चतुर होतें है, नेटवर्क निपुण होने की वजह से, अपना स्थान तो अर्जित कर लेते है परन्तु अपने साथियों के बीच जगह नहीं बना सकते। इस लिए अनुभव से जाना कि उन्होंने सिर्फ एक गुण पर ध्यान दिया और दूसरे को छोड़ दिया। इस से पैसा, पदवी और पोज़ीशन तो मिल सकती है, पर आप आनन्द से कोसों दूर होते है।
कुछ महानुभाव बहुत अच्छे वक्ता होतें है, पर अपने साथियों के लिए कुटिल भाव रखते है, और समय-असमय अपने निजी हित के लिए उन को धोखा दे देते है। ऐसे लोग जुगाड़-तुगाड़ कर एक अच्छा पद या अहोदा तो पा लेते है, पर इज्ज़त नहीं मिलती। असल में वह जीवन भर अपने आप को ही धोखा देते रहते है।
दूसरी ओर कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी मिले, जिन को मिलते ही उन से जुड़ाव हो गया या यह बोले की प्यार हो गया। बहुत ही साधारण नौकरी या जीवन शैली, सामान्य आजीविका के साधन पर प्रतिभा के धनी – असीम आनन्द को अनुभव करने वाले। निष्पाप – निष्कंकित जीवन जीते हुए सब को साथ ले कर, बिना किसी अपेक्षा के, कोई निजी स्वार्थ नहीं। इन को जब समीप से जाना तब पाया कि यह जो सोचते है, वही बोलते है, और उन का इरादा, उन की मंशा भी साफ झलकती है, उन के निःस्वार्थ कर्मों से। उन के भाव, विचार, वाणी और कर्म सब एकसार, एकतार, एकम होते है। यह लोग त्रिगुणी होते है।
त्रिगुणी कैसे बने ?
त्रिगुणी बनने के लिए सब से पहले हमें उन तीन गुणों को जानना होगा।
सुविचार पहला गुण है – विचारों को नियंत्रित करना। हमारे विचार सब से ज्यादा प्रभाव डालतें है हमारे कर्मों पर। इसलिए सकारात्मक विचारों पर ध्यान देना होगा और अभ्यास द्वारा उन को आमंत्रित करना होगा। एक समय पर केवल एक विचार पर ध्यान देना सीखना होगा।
स्व:भाव दूसरा गुण है – अपने स्व:भाव का आभास। अपने भावों को जानना – फिर हमारा स्व:भाव, हमारे असली भाव जो हमारी आत्मा के सब से करीब है, उस के प्रभाव को जानना होगा | प्रयास और अभ्यास द्वारा अपने सच्चे भावों को आभास कर,अपने सकारात्मक विचारों के साथ जोड़ना होगा। अगर हमारे भाव और विचार का मिलान हुआ तो हमारे कर्म स्वमेव सत्कर्मों में बदल जायेंगे।
सदाचार तीसरा गुण है – अपने कार्य करने की निपुणता। इस को प्राप्त करने के लिए हमें अपने कर्मों को करने की प्रक्रिया – हमारी कार्यशैली को जानना होगा। प्रयास, अभ्यास और अपने ऊपर पूर्ण विश्वास से हम यह निपुणता भी प्राप्त कर सकते हैं।
परन्तु त्रिगुणी होने के लिए इतना ही काफी नहीं है – हमें उस अप्रत्यक्ष शक्ति को जो इन तीनों को बांध कर रखती है और सही दिशा में ले जाती है, एकसार होने में मदद करती है, उस को भी साधना होगा और वह है हमारी इन्टेंशन – हमारी मंशा (इरादा)।
जिस दिन हम ने अपनी मंशा को ईश्वर को मंशा के साथ जोड़ दिया – एकसार कर लिया उस पल, उसी समय से हम त्रिगुणी हो गए। भाव, विचार, वाणी, क्रिया सब एकसाथ, एकसार, एकतार, समन्वय बना कर जिंदगी जीना
आनन्दित जीवन के लिए अपने सच्चे भाव को अपने सकारात्मक विचारों के साथ जोड़ें, और अपने अंदर के विश्वास को जगा कर निपुणता के साथ सत्कर्म करते हुए सेवा करें।
अपने जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ें और जुड़ें इस आनन्द यात्रा में।
आप का सहयोगी और सहयात्री
गोपीकृष्ण बाली
अति सुन्दर अभिव्यक्ति 👌🙏
It’s true, we need to have coordination in life.