आत्म – निर्भरता Self-Reliance

कुछ कहानियाँ ऐसी होती है जो जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का ज़वाब बहुत सरलता के साथ दे देती है तो कुछ कहानियाँ ऐसी होती है जिस को सुना तो बहुत पहले होता है पर समझ देर से आती है। आज की कहानी बचपन में अपनी माँ से सुनी थी, कई बार अपनी ट्रेनिंग में भी इस्तेमाल किया – अपनी बात को समझने के लिए, पर शायद अपने आप को नहीं समझाया कि यह सीख अपने पर भी लागू होती है। प्रस्तुत है वह कहानी जो आज मेरे लिए बहुत प्रासंगिक हो गई है।

गोपी कृष्ण बाली

एक बहुत बड़े गांव में एक हरे भरे खेत के बीच में, एक चिड़ियाँ अपने परिवार के साथ मज़े से रहती थी। चिड़ियाँ रोज़ अपने घोंसलें से निकल कर, गिरे हुए अनाज़ के दानों को इकट्ठा कर अपने और अपने बच्चों का भरण-पोषण कर रही थी।

समय के साथ जब फसल पक कर तैयार हो गई तो एक दिन किसान आया और सब कुछ देख कर बहुत खुश हुआ और बोला – मेरी मेहनत रंग ले आई है अब इस फसल को काटने का सही समय है, कल ही मजदूरों को बुला कर इस को कटवाता हूँ।

यह बात सुन चिड़ियाँ के बच्चे घबरा गए – शाम होते – होते तो उन की जान ही सूख गई। माँ के वापिस आने पर बोले – माँ जल्दी से अपना सामान समेटों – कल किसान अपनी फसल काटेगा। अच्छा होगा हम अभी यह खेत छोड़ कर कहीं और सुरक्षित जगह चलें।

चिड़ियाँ ने हँस कर कहा :- चिंता मत करो – अभी कुछ नहीं होगा।

दो-तीन दिन निकल गए और एक दिन वह किसान फिर आया और अपने दोस्तों के साथ बात की :- समय निकलता जा रहा है – अब फसल पूरी तैयार है – तुम सब मेरी मदद करों और हम सब मिल कर इस फसल को काटते है. सब साथियों ने आश्वासन दिया कि कल सब आयेंगें और चुटकी में सब काम हो जाएँ गा।

चिड़ियाँ के बच्चे फिर परेशान हो कर अपनी माँ को घर बदलने पर ज़ोर डालने लगे। पर चिड़ियाँ बड़ी आश्वस्त थी – बोली की अभी आराम करों – कुछ भी नहीं होगा। उस के बच्चे अब माँ से बहुत नाराज़ हो कर बैठ गए। कुछ दिन और बीत गए – खेत नहीं कटा।

किसान एक शाम को कुछ गाँव वालों के साथ आया और सब को खेत दिखा कर बोला – यह काम करना है – मेरा साथ दो, मैं तुम्हें इस पैदावार का कुछ हिस्सा भी दे दूँगा। सब मान गए और कल सुबह काम शुरू करने का विश्वास दिला अपने अपने घर चले गए।

अब तो चिड़ियाँ के बच्चों ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया और बहुत गुस्से हो कर अपनी माँ को घर बदलने पर ज़ोर डालने लगे। चिड़िआ शांत भाव से बोली की अभी आराम करों – अभी कुछ भी नहीं होने वाला। उस के बच्चे अब माँ से बहुत नाराज़ हो कर सोचने लगे – कहीं माँ का दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया – खुद भी मरेगी और हमें भी मरवा देगी । कुछ दिन और बीत गए – खेत फिर भी नहीं कटा।

एक दिन किसान अपने परिवार के साथ खेत पर आया और सब आपस में विचार – विमर्श करने लगे कि अब समय हाथ से निकलता जा रहा है क्या करें और सब जाएँ। अंतः किसान ने निर्णय लिया और सब परिवारजन को निर्देश दिया – आज घर चलो – अपने अपने औज़ार इकट्ठे करो और कल सुबह हम सब ही मिल कर खेत काटेंगें। सब ने एकमत हो कर स्वीकृति दी और चले गए।

चिड़िआ ने तुरंत अपने बच्चों को कहा – चलो बच्चों अब समय आ गया है यह खेत , यह घर बदलने का। कल यह खेत जरूर कटेगा। हमें आज रात को ही यह घर छोड़ना होगा। इतना कह कर वह सब जल्दी-जल्दी अपना घोंसला छोड़ कर एक सुरक्षित पेड़ पर जा कर रहने लगे।

साथियों ! अब आप बताएँ कि अगले दिन खेत कटा होगा या नहीं ?
चिड़िआ ने किस वजह से अपना निर्णय लिया और घर बदला ?

इस कहानी में कहीं अपने आप को किसान की जगह तो नहीं देख रहें है?
क्या आप अपने जीवन के साथ या जीवन के किसी पड़ाव या परिस्थिति के साथ समकक्ष होने का अनुभव तो नहीं कर रहें है?
क्या कहीं अपने आप को चिड़िआ की जगह तो नहीं देख रहें?

कैसी लगी आप को यह कहानी और क्या समझ मिली आप को? आत्म-निर्भरता (self-relianceका वास्तविक मतलब समझ आया क्या?

आप के विचार कृपया कमेंट बॉक्स में लिखें और अगर आप को लगता है कि यह कहानी किसी को प्रेरित कर सकती है या किसी के जीवन को एक नया दृषिकोण दे सकती है तो इसे अपने सोशल-मीडिया लिंक पर साँझा करें। धन्यवाद 🙂

The Source

The Source (Founder - CEO)
CircleX.in | Centre of Excellence for
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