अद्भुत आनन्दित जीवन के लिए सब से पहले जो सब से चंचल है, छलावा है, यानि हमारा मन – पहले उस को समझना होगा फिर समझाना होगा और समझ के साथ उस को साधना होगा। मन जो सिर्फ एक काल्पनिक आयाम है हमारे विचारों का। जिस का अपना कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि वह सिर्फ हमारे द्वारा ही उत्पन्न होता है, जो हमारे ही विचारों का पुलिंदा है।
अब स्वाभाविक है जो सिर्फ विचारों से बना हो, जो हमारी कल्पना की, हमारी मानसिकता का प्रतिबिम्ब हो, उस को अगर समझना है तो हमें सब से पहले उस के उद्गम स्थान को, जहाँ से वह जन्म ले रहा है, पोषित हो रहा है उस को जानना और समझना होगा।
आप सब ने हिन्दू पौराणिक कथाओं में वर्णित भस्मासुर की कहानी तो सुनी होगी। उस दैत्य ने शिवजी की साधना कर वरदान प्राप्त किया कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। फिर भस्मासुर ने अपने मन के दुष्ट स्वभाव के अनुसार इस शक्ति का गलत प्रयोग करना शुरू किया और स्वयं शिव जी को ही भस्म करने चला। शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर के मन को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय जब भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा तब उचित मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल अपनी मन:शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। और भस्मासुर अपने ही मन के वशीभूत हो उस दुर्लभ वरदान से भस्म हो गया।
यह है इस मन का खेल। सब कुछ मिलने के बाद भी अपनी लालसा, अपनी काल्पनिक इच्छाओं को आप के ऊपर लाद कर वह आप से चुपके-चुपके आप की लगाम – आप की सोचने और समझने की शक्ति को – जो एक वरदान है आप के लिए आप के ही विरुद्ध या आप के आनन्द के अंत का कारण बना देता है।
यही मन अपनी चालों को चल कर आप को मनचला बना सकता है और इसी मन को साध कर – नमन (न – मन) कर आप सदैव आनन्दित जीवन – इस दुनियाँ रूपी चमन के अमन को पा सकते है।
मन को नमन या अमन कैसे करें?
चलिए अब देखें कि इस मन को कैसे साधें। जैसे हम ने जाना की मन विचारों का पुलिन्दा है, तो सब से आसान तरीका होगा की इस पुलिन्दे को ही खोल दें या न बनने दें। मन को हम ने अपने सेवक के रूप में, अपनी इच्छाओँ की पूर्ति के लिए बुलाया था, और जैसे एक चिराग़ के घिसने से जिन्न प्रकट होता है, और आप यानी अपने आका की हर इच्छा को पूरा करता है उसी तरह शुरू में तो यह मन भी मापकी पसन्द के अनुरूप काम करता है। फिर वह धीरे-धीरे जब आप अपने स्वभाव को भूल कर उस के अनुसार यानि मनपसन्द काम को बढ़ावा देते है, फिर वह आप को रिझा कर अपना गुलाम बना लेता है।
जरा सोचिये ! अगर चिराग का वह जिन्न आप के काम को कर के फिर वापिस चिराग़ में न जा कर आप के साथ ही बैठ जाये, अपने नए तमाशों से, अपनी नई चालों से आप का दिल बहलाने लगे और आप भी उस नकली आनन्द के मज़े ले कर अपना समय और जीवन – शक्ति को व्यर्थ के कामों में लगा दें।
अब वह मन जो आप को – यानि इस शरीर रूपी चिराग़ के मालिक को, सेवा देते हुए खुश होता था, अब वही मन अधिक काम होने पर, यानी आप की फालतू की फरमाइशों को पूरा करने के चक्कर में, दुःखी हो कर आप को ही मनचला बना अब आराम से बैठा है। उसी चिराग़ को, जिस ने उसे पाला, आश्रय दिया, रहने की जगह दी, उस का मन-मालिक बन गया।
अगर आप को अब कुछ समझ आ रहा है और आप चाहते है की आप फिर उस चिराग़ के मालिक बन कर, आनन्द जीवन जियें, जब जरूरत हो तब मन आप की बात मान कर आप का सहायक बन कर काम करें तो आप को एक समय में एक विचार – यानी मन को आवश्यक्ता अनुसार काम दे कर फिर से ख़ुश करना होगा। प्रफुल्लित मन सदैव आप का गुलाम बन कर, सहायक बन कर आप के आनन्द को बढ़ाने में आप का साथ देगा, और नमन हो कर रहेगा।
इसलिए अपने मन को साधने के लिए अपने विचारों पर ध्यान देना पड़ेगा। विचारों को नियंत्रित कर लिया तो मन भी ख़ुश और आप भी अपने जीवन -लक्ष्य की और अग्रसर रहेंगे। परन्तु विचार तो आँधी की तरह आते है और आप को – आप के चमन को – दिल की बगिया को उजाड़ कर चले जाते है। विचारों को साधना यानी उन विचारों की गिनती और गति को आँकना और प्रयास – अभ्यास द्वारा उन्हें संभालना – साधना।
प्रयास #१ – जब भी विचारों की आंधी आप के द्वार पर पहुँचे तो उन से भिड़ न जाये। जितना आप उन को अपने से दूर करने का प्रयास करेंगे उतने ही जोश से वह वापिस आ कर आप पर जोर डालेंगे। इसलिए आप को सतर्क हो कर कुछ विचारों को, जो सकारात्मक है, उन को अंदर प्रवेश दे देना है, फिर उन की सहायता से आप दुष्ट दूर रख सकेंगे। यानि जो आप की मुश्किल को बढ़ा सकते थे उन को आप ने साध कर अपने योग्य बना कर, अपनी मुश्किलों को कम करने के लिए सदुपयोग कर लिया।
जो विचारों की आँधी आप के आनन्दवन को नष्ट कर सकती थी उन को आप ने अपने मन द्वारा नियंत्रण में कर के, आनंदवन की रक्षा में, खत-पतवार, कंटीली झाड़ियों को उखाड़ने में लगा दिया।
इसी तरह सब कुछ संभव है आप के कर्मक्षेत्र में भी।
अपने जीवन को आनंदमय बनाने के लिए अपने अच्छे विचारों का चयन, अपनी इच्छा को जान कर – पहचान कर, अपने जीवन लक्ष्य के अनुरूप ढ़ाल कर, अपने मन की लग़ाम को अपने हृदय को दे कर आप न सिर्फ अपने जीवन-लक्ष्य को पूरा कर सकते है बल्कि दूसरों की सहायता भी कर सकते है।
क्या कहना है आप का ? मनचले बनना है या मन को साध कर आनन्दित – परम आनन्द को पाना है ?
मन को नमन कर अमन से जीवन जीने की साधना करिये, आनन्दित साधक बनिए और अपनी आनन्द यात्रा को शुरू करिये।
आप का साथी, सहयोगी और सहयात्री
गोपीकृष्ण बाली
अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत।